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नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का दवाई द्वारा उपचार

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नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का दवाई द्वारा उपचार

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में लक्षण मुक्त करने के लिए प्रेडनिसोलोन एक मानक उपचार है अधिकांश बच्चों पर इस दवा का अनुकूल प्रभाव पड़ता है। 1 से 4 हते में सूजन और पेशाब में प्रोटीन दोनों गायब हो जाते हैं। पेशाब जब प्रोटीन से मुक्त हो जाये तो उस स्थिति को रेमिषन कहते हैं।

वैकल्पिक चिकित्सा

बच्चों का एक छोटा समूह जिन पर स्टेरॉयड चिकित्सा का अनुकूल प्रभाव नहीं हो पाता, उनकी पेशाब में प्रोटीन की मात्रा लगातार बढ़ती रहती है। ऐसे में किडनी की आगे की जाँच की आवश्यकता होती है जैसे किडनी की बायोप्सी उन्हें लीवामिजोल, साइक्लोफॉस्फेमाइड, साइक्लोस्पेरिन, टेक्रोलीमस, माइकोफिनाइलेट आदि वैकल्पिक दवा दी जाती है। स्टेरॉयड के साथ-साथ वैकल्पिक दवा भी दी जाती है। जब स्टेरॉयड की मात्रा कम कर दी जाती है तो ये दवा रेमिषन को बनाये रखने में सहायक होती है।

सहायक दवा चिकित्सा

  • सूजन पर जल्दी नियंत्रण पाने के लिए पेशाब ज्यादा मात्रा में हो ऐसी दवाईयाँ (डाइयूरेटिक्स) अल्प अवधि के लिये दी जाती हैं।
  • रक्तचाप पर नियंत्रण रखने और पेशाब में प्रोटीन की मात्रा को कम करने के लिए विशेष दवाऐं, जैसे ए. सी. ई. अवरोधक और एंजियोटेनसिन रिसेप्टर अवरोधक दवायें दी जाती है।
  • संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवायें दी जाती हैं। (बैक्टीरियल सेप्सिस, पेरिटोनाइटिस, निमोनिया आदि संक्रमण के लिए)
  • कोलेस्टिरॉल और ट्राइग्लिसराइड को कम करने के लिए दवायें जैसे स्टैटिन (सिमवास्टेटिन, एटोरवास्टेटिन, रोस्युवास्टैटिन आदि ) जो दिल और रक्त वाहिनियों की समस्या के जोखिम को रोक सके।
  • कैल्शियम, विटामिन डी और जिंक को पूरक दवा की तरह दी जाती है।

प्रेडनीसोलोन क्या काम करती है और उसे किस तरह दिया जाता है?

  • प्रेडनीसोलोन पेशाब में जानेवाले प्रोटीन को रोकने की एक कारगर दवा है। यह दवा कितनी देनी है, यह बच्चे के वजन और रोग की गंभीरता को ध्यान में रखकर डॉक्टर द्वारा निश्चित किया जाता है।
  • यह दवा कितने समय के लिए और किस तरह लेनी है, यह विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा तय किया जाता है इस दवा के सेवन से ज्यादातर मरीजों में एक से चार सप्ताह के अंदर पेशाब में प्रोटीन जाना बंद हो जाता है ।
  • बार-बार बीमारी के पुनः बढ़ने को रोकने के लिए डॉक्टर की सलाह के अनुसार दी गई दवा को पूरी अवधि तक लेना चाहिए । प्रेडनीसोलोन के दुष्प्रभाव के डर से इलाज को बीच में छोड़ने की गलती नहीं करनी चाहिए।

प्रेडनिसोलोन दवा का कुप्रभाव (Side Effect ) क्या होता है?

प्रेडनीसोलोन नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के उपचार की प्रमुख दवा है, लेकिन इस दवा के कुछ दुष्प्रभाव भी हैं इन दुष्प्रभावों को काम करने के लिए इस दवा का सेवन डॉक्टर की सलाह और देखरेख में ही करना उचित है।

कम समय में दिखने वाले कुप्रभाव / विपरीत असर

अधिक भूख लगना, वजन बढ़ जाना, एसीडीटी होना, (पेट व छाती में जलन होना), स्वभाव में चिड़चिड़ापन होना, संक्रमण होने की संभावना बढ़ना, खून का दबाव बढ़ना और शरीर में रोयें बढ़ना इत्यादि ।

लम्बे समय बाद दिखने वाले विपरीत असर / कुप्रभाव

 बच्चों का विकास कम होना (लम्बाई कम बढ़ना) हड्डियों का कमजोर होना, चमड़ी खींचने से जांघ और पेट के नीचे के भाग में गुलाबी लकीरें पड़ना, मोतियाबिंद (Cataract) होने का भय होना इत्यादि ।

इतने अधिक विपरीत असरवाली प्रेडनीसोलोन दवा लेना क्या बच्चों के लिए फायदेमंद है?

हाँ। सामान्यतः जब यह दवाई ज्यादा मात्रा में लम्बे समय तक ली जाये, तब दवाई का विपरीत असर होने का अधिक भय रहता है। डॉक्टर की सलाह के अनुसार उचित मात्रा में और कम समय के लिए दवा के सेवन से दवाई का विपरीत असर कम और थोड़े समय के लिए ही होता है इस दवाई का सेवन डॉक्टर की देखरेख में किया जाता है, तब गंभीर एवं विपरीत असर का प्रारंभ में ही निदान हो जाने के कारण तुरन्त ही उपचार में उचित परिवर्तन द्वारा उसे रोका या कम किया जा सकता है। अनुपचारित रोग के कारण कई जटिलतायें हो सकती है। जैसे संक्रमण का खतरा, हाइपोवोलीमिया, थ्रोम्बोएम्बलजिम (जिसमें खून का थक्का, रक्त वाहिकाओं में बाधा डालकर स्ट्रोक, दिल का दौरा और फेफड़ों की बीमारी का कारण बनता हैं), लिपिड की असमान्यता, कुपोषण और एनीमिया । अनुपचारित नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के कारण संक्रमण से अक्सर कई बच्चों की मृत्यु हो जाती है। बचपन में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के लिए कोर्टिकोस्टेराइड के उपयोग के कारण अब मृत्यु दर घटकर 3% हो गयी है। फिर भी रोग के कारण होनेवाली तकलीफें और खतरों के मुकाबले दवाई का विपरीत असर कम हानिकारक है। इसलिए ज्यादा फायदे के लिए थोड़े विपरीत असर को स्वीकार करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं हैं।

अधिकांश बच्चों में उपचार के तीसरे या चौथे सप्ताह में पेशाब में प्रोटीन नहीं जाने के बावजूद, सूजन जैसी तकलीफ बनी रहती है। क्यों?

प्रेडनीसोलोन के सेवन करने से भूख बढ़ती है। अधिक खाने से शरीर में चर्बी जमा होने लगती है, जिसके कारण तीन-चार सप्ताह में फिर से सूजन आ गई है ऐसा लगने लगता है।

प्रेडनीसोलोन का उपचार यदि सफल नहीं हो, तब उपयोग की जानेवाली अन्य दवाईयाँ कौन-कौन सी है?

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में उपयोग की जानेवाली अन्य दवाओं में लीवामिजोल', 'मिथाइल प्रेडनीसोलोन', 'साइक्लास्पोरिन, एम. एम. एफ (M.M.F.) इत्यादि दवाईयाँ हैं ।

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के बच्चों में किडनी बायोप्सी कब कराई जाती है?

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में किडनी बायोप्सी की जरूरी निम्नलिखित परिस्थितियों में पड़ती है :

  • रोग पर नियंत्रण के लिए ज्यादा मात्रा में तथा लम्बे समय तक प्रेडनीसोलोन दवा लेनी पड़ रही हो ।
  • प्रेडनीसोलोन लेने के बाद भी रोग नियंत्रण में नहीं आ रहा हो
  • अधिकांश बच्चों में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम होने के लिए जिम्मेदार रोग मिनीमल चेन्ज डिजीज होता है। जिन बच्चों में यह रोग 'मिनीमल चेन्ज डिसीज' के कारण नहीं होने की शंका हो, (जैसे पेशाब में रक्तकणों की उपस्थिति, खून में क्रिएटिनिन की मात्रा ज्यादा होना, कोम्प्लीमेंट (C-3) की मात्रा कम होना इत्यादि) तब किडनी की बायोप्सी कराना जरूरी होता है।
  • जब यह रोग वयस्कों में होता हैं, तब आमतौर पर उपचार किडनी बायोप्सी के बाद किया जाता है।

रोग की सूजन और चर्बी जमा होने से सूजन जैसा लगना, दोनों के बीच का अंतर कैसे मालूम किया जा सकता है?

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में रोग बढ़ने के कारण सूजन सामान्य रूप से आँखों के नीचे और चेहरे पर दिखाई देती है, जो सुबह ज्यादा और शाम को कम हो जाती है। इसके साथ-साथ पैरों में भी सूजन हो सकती है। दवाई लेने से अक्सर चेहरे, कंधे और पेट पर चर्बी जमा होती है, जिससे वहाँ सूजन जैसा दिखने लगता है इस सूजन का असर पूरे दिन के दौरान समान मात्रा में दिखाई देता है । आँखों और पैरों पर सूजन का न होना और चेहरे की सूजन सुबह ज्यादा और शाम को कम न होना, ये लक्षण सूजन नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के कारण नहीं है, यह दर्शाते हैं।

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के कारण होनेवाली सूजन और दवा के असर के कारण चर्बी जमा होने से सूजन जैसा लगने के बीच अंतर जानना क्यों जरूरी है?

मरीज के लिए कौन सा उपचार उचित रहेगा यह निश्चित करने के लिए सूजन होने एवं सूजन जैसे लगने के बीच का अंतर जानना जरूरी है।

  • नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के कारण यदि सूजन हो, तो दवाई की मात्रा में बढ़ोत्तरी या परिवर्तन और साथ-साथ पेशाब की मात्रा बढ़ानेवाली दवाईयों की जरूरी पड़ती है।
  • चर्बी जमा होने के कारण सूजन जैसा लगना, पेंडनीसोलोन दवा द्वारा नियमित उपचार का असर बताता है। जिससे रोग नियंत्रण में नहीं है या रोग बढ़ गया है. ऐसी चिन्ता करने की जरूरत नहीं हैं। समय के साथ-साथ प्रेडनीसोलोन दवा की मात्रा कम होने से, कुछ हप्तों में सूजन भी धीरे-धीरे कम होते हुए पूर्णतः ठीक हो जाती है। ऐसी दवा की वजह से उत्पन्न सूजन को तुरन्त कम करने के लिए किसी भी प्रकार की दवाई लेना मरीज के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

अंर्तनिहित कारणों का उपचार

सेकेन्डरी नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के अंर्तनिहित कारणों जैसे- डायाबिटीक किडनी डिजीज, लूपस किडनी डिजीज, एमेलॉयडोसिस आदि का सावधानीपूर्वक उपचार करना महत्वपूर्ण है नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम को नियंत्रित करने के लिए इन विकारों का उपचार आवश्यक है।

सामान्य सलाह

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम एक ऐसी बीमारी है जो कई वर्षो तक रहती है । मरीज और उसके परिवार वालों (परिजनों) को इस बीमारी की प्रकृति और उसकी रोकथाम के लिए किया जाने वाला इलाज और उसके दुष्प्रभाव, संक्रमण की रोकथाम और जल्दी उपचार के लाभ के बारे में उचित एवं पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए । रिलैप्स के दौरान जब शरीर में सूजन हो तब मरीज को अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है की बीमारी के दौरान मरीज से सामान्य बालक जैसा ही व्यवहार करना चाहिए।

  • नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के मामले में स्टेराइड चिकित्सा शुरू करने के पहले पर्याप्त जाँच की जानी चाहिए।
  • नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के मरीज बच्चे अन्य संक्रमणों से ग्रस्त हो सकते हैं नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में संक्रमण की रोकथाम, उसका जल्दी पता लगाना और उनका उपचार करना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि संक्रमण, नियंत्रित बीमारी को बढ़ा सकती है (तब भी जब मरीज का इलाज चल रहा हो ) ।
  • संक्रमण से बचने के लिए परिवार और बच्चे को साफ पानी पिने की और पूरी सफाई से साथ धोने की आदत डालनी चाहिए। भीड़ भरे इलाके संक्रामक रोगियों के संपर्क में आने से बचना चाहिए ।
  • जब स्टेराइड का कोर्स पूरा हो चूका हो तब नियमित टीकाकरण की सलाह देनी चाहिए ।

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