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किडनी के रोगों के संबंध में पन्द्रह गलत धारणाएँ

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किडनी के रोगों के संबंध में पन्द्रह गलत धारणाएँ

किडनी के सभी रोग गंभीर होते हैं ।

किडनी के सभी रोग गंभीर नहीं होते हैं। तुरंत निदान तथा उपचार से किडनी के बहुत से रोग ठीक हो जाते हैं। अधिकांश मामलों में, शीघ्र निदान और उपचार बीमारी के बढ़ने की गति को धीमा या उसकी प्रगति को रोक सकते हैं।

किडनी फेल्योर में एक ही किडनी खराब होती है।

किडनी फेल्योर में दोनों किडनी खराब होती है। सामान्यतः जब किसी मरीज की एक किडनी बिल्कुल खराब हो जाती है, तब भी मरीज को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है। खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जब दोनों किडनी खराब हो जाए, तब शरीर का अनावश्यक कचरा जो कि किडनी द्वारा साफ होता है, शरीर से नहीं निकलता है। जिससे खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है। खून की जाँच करने पर क्रिएटिनिन एवं यूरिया की मात्रा में वृद्धि किडनी फेल्योर दर्शाता है।

किडनी के किसी भी रोग में शरीर में सूजन आना किडनी फेल्योर का संकेत है।

किडनी के कई रोगों में किडनी की कार्य प्रणाली पूरी तरह से सामान्य होते हुए भी सूजन आती है, जैसे कि नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में होता है।

किडनी फेल्योर के सभी मरीजों में सूजन दिखाई देती है ।

कुछ मरीज जब दोनों किडनी खराब होने के कारण डायलिसिस कराते हैं, तब सूजन नहीं होती है। संक्षिप्त में किडनी फेल्योर के अधिकांश मरीजों में सूजन दिखाई देती है, परन्तु सभी मरीजों में नहीं। कुछ रोगियों को किडनी फेल्योर के अंतिम चरण में भी सूजन नहीं होती है।

किडनी की बीमारी वाले सभी रोगियों को बड़ी मात्रा में पानी पीना चाहिए।

कम पेशाब उत्पादन, कई किडनी रोगों में पाया जाने वाला एक प्रमुख / महत्वपूर्ण लक्षण है। इसलिए ऐसे रोगियों में पानी के संतुलन को बनाए रखने के लिए पानी पर प्रतिबंध रखना आवश्यक है। हांलाकि उन मरीजों जो किडनी की पथरी के रोग और सामान्य तरीके से काम करने वाले किडनी के साथ मूत्रमार्ग में संक्रमण से पीड़ित हैं उनको पानी की ज्यादा मात्रा पीने की सलाह दी जाती है।

मैं स्वस्थ हूँ इसलिए मुझे किडनी की बीमारी नहीं है।

सी. के. डी. (क्रोनिक किडनी डिजीज) के प्रारंभिक दौर में प्रायः मरीज लक्षण रहित होते हैं। प्रयोगशाला परीक्षण में जो असामान्य रिपोर्ट प्राप्त होती है वे इस स्तर पर केवल अपनी उपस्थिति का संकेत देते हैं।

अब मेरी किडनी ठीक है, मुझे दवाई लेने की जरूरत नहीं है।

क्रोनिक किडनी फेल्योर के कई मरीजों में उपचार से रोग के लक्षणों का शमन हो जाता है। ऐसे कुछ मरीज निरोगी होने के भ्रम में रहकर अपने आप ही दवाई बंद कर देते हैं, जो खतरनाक साबित हो सकता है। दवा और परहेज के अभाव से किडनी जल्द खराब होने और कुछ ही समय में मरीज को डायलिसिस का सहारा लेने का भय रहता है।

खून क्रिएटिनिन की मात्रा थोड़ी अधिक हो लेकिन तबियत ठीक रहे, तो चिन्ता अथवा उपचार की जरूरत नहीं है।

यह बहुत ही गलत ख्याल है। कई प्रकार की किडनी की बीमारियाँ किडनी को नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए बिना देरी किये नेफ्रोलॉजिस्ट के पास परामर्ष के लिए जाना चाहिए। अगले अनुच्छेद में हम सीरम क्रीएटिनिन के वृध्दि के महत्व को समझने की कोशिश करेंगे क्योकि वह क्रोनिक किडनी डिजीज के विभिन्न चरणों से संबंधित है व अति महत्वपूर्ण है। प्रारंभिक दौर में प्रायः क्रोनिक किडनी डिजीज लक्षण रहित होती है। सीरम क्रीएटिनिन की वृध्दि अंतर्निहित किडनी की बीमारी का केवल सुराग हो सकता है।

क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीज में क्रीएटिनिन की मात्रा थोड़ी बढ़ती तभी देखने को मिलती है, जब दोनों किडनी की कार्यक्षमता में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई हो। जब खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 1.6 मिली ग्राम प्रतिशत से ज्यादा हो, तब कहा जा सकता है की दोनों किडनी 50 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो गई है। इस अवस्था में लक्षणों के अभाव से कई मरीज उपचार और परहेज के प्रति लापरवाह रहते हैं। लेकिन इस अवस्था उपचार और परहेज से सबसे अधिक फायदा होता है। सी. के. डी. का जल्दी पता लगाना और प्रारंभिक चरण में उचित चिकित्सा सबसे फायदेमंद है। क्रोनिक किडनी डिजीज के इस स्तर और नेफ्रोलॉजिस्ट की देखरेख में उपचार से बची हुई किडनी की कार्यक्षमता को लम्बे समय तक बनाए रखने में मदद मिलती है।

सामान्यतः खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 5.0 मिली ग्राम प्रतिशत हो जाए तब दोनों किडनी 80 प्रतिशत तक खराब हो चुकी होती है। इस अवस्था में किडनी में खराबी काफी ज्यादा होती है। इस अवस्था में भी सही उपचार से किडनी को मदद मिल सकती है। लेकिन हमें पता होना चाहिए की इस अवस्था में उपचार से किडनी को मिलनेवाले सभी फायदे का अवसर हमने गंवा दिया है। जब खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 8.0 से 10.0 मिली ग्राम प्रतिशत हो तब दोनों किडनी बहुत ज्यादा खराब हो गई होती है। ऐसी स्थिति में दवाई, परहेज एवं उपचार से किडनी का पुनः सुधारने का अवसर हम लगभग खो चुके होते हैं। अधिकांश मरीजों को ऐसी हालत में डायालिसिस की जरूर पड़ती है।

एक बार डायलिसिस कराने पर बार-बार डायलिसिस कराने की आवश्यकता पड़ती है।

एक्यूट किडनी फेल्योर में मरीजों को कुछ डायालिसिस कराने के बाद, किडनी पुनः पूरी तरह से काम करने लगती है और फिर से डायालिसिस कराने की जरूरत नहीं रहती है।

गलत धारणाओं की वजह से डायालिसिस में विलंब करने पर मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। क्रोनिक किडनी डिजीज किडनी फेल्योर का एक अपरिवर्तनीय प्रकार है ।

सी. के. डी. के अंतिम चरण पर नियमित आजीवन डायालिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। वैसे क्रोनिक किडनी फेल्योर के अंतिम चरण में तबियत अच्छी रखने के लिए नियमित डायालिसिस अनिवार्य है। संक्षेप में, कितनी बार डायालिसिस कराने की जरूरत है, वह किडनी फेल्योर के प्रकार पर निर्भर है।

डायालिसिस इलाज द्वारा किडनी फेल्योर को रोका जा सकता है।

डायालिसिस से किडनी फेल्योर का इलाज नहीं होता है। डायालिसिस को किडनी का पूरक उपचार भी कह सकते हैं । किडनी की विफलता में यह एक प्रभावी और जीवन रक्षक चिकित्सा है। यदि अपशिष्ट उत्पादों, अतिरिक्त तरल पदार्थ किसी व्यक्ति में जमा हो जाएँ तो वह मृत्यु का कारण हो सकता है। डायालिसिस वह कार्य करता है जो कार्य किडनी करने में सक्षम नहीं है। डायालिसिस गंभीर किडनी की विफलता से पीड़ित रोगियों के जीवनकाल को बढ़ाने में सहायक है।

किडनी प्रत्यारोपण में स्त्री और पुरूष एक दूसरे को किडनी नहीं दे सकते हैं ।

एक जैसी रचना के कारण पुरुष स्त्री को और स्त्री पुरूष को किडनी दे सकते हैं।

किडनी देने से तबियत और रतिक्रिया (Sex) पर विपरीत असर पड़ता है।

एक किडनी के साथ सामान्य दिनचर्या और रतिक्रिया में कोई अड़चन नहीं आती है।

किडनी प्रत्यारोपण के लिये, किडनी खरीदी जा सकती है।

कानूनी तौर पर किडनी बेचना और एसे खरीदना दोनों अपराध है, जिसके लिए जेल भी हो सकती है। असके अलावा खरीदी हुई किडनी के प्रत्यारोपण में असफल होने की संभावना ज्यादा होती है एवं प्रत्यारोपण के बाद दवा का खर्च भी काफी ज्यादा होता है।

मेरा खून का दबाव सामान्य है, इसलिये अब मुझे दवा लेने की जरूरत नहीं है। मुझे कोई तकलीफ नहीं है, तो मैं व्यर्थ में दवा क्यों लूँ?

उच्च रक्तचाप से पीड़ित मरीजों में खून का दबाव काबू में आने के बाद, कई मरीज ब्लडप्रेशर की दवा बंद कर देते हैं। कुछ मरीजों में खून का दबाव ज्यादा होने के बावजूद कोई तकलीफ नहीं होती है। इसलिये वे दवा का सेवन बंद कर देते हैं। यह गलत धारणा है ।

खून के ऊँचे दबाव के कारण दीर्घ समय में किडनी हृदय, तथा दिमाग पर इसका गंभीर असर हो सकता है। ऐसी स्थिति को टालने के लिए कोई तकलीफ नहीं होने के बावजूद, उचित तरीके और समय से दवा का नियमित सेवन एवं परहेज करना अत्यंत जरूरी होता है।

किडनी सिर्फ पुरुषों में होती है, जो दोनों पैरों के बीच थैली में होती है।

पुरूष और स्त्री दोनों में किडनी की रचना एवं आकार एक समान होता है, जो पेट के पीछे और उपरी भाग में रीढ़ की हड्डी के बगल में दोनों तरफ होती हैं पुरुषों में पैरों के बीच थैली में गोली के आकार के अंग को वृषण (टेस्टीज) कहते हैं, जो प्रजनन का एक महत्वपूर्ण अंग है।

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